Sunday, October 13, 2013

भैंस में मुंह खुर रोग

भैंस में मुंह खुर रोग
अशोक बूरा, सरिता यादव, के पी सिंह, नरेश जिन्दल, रमेश कुमार 

यह विषाणु जनित तीव्र संक्रमण से फैलने वाला रोग मुख्यत: विभाजित खुर वाले पशुओं में होता है भैंस में यह रोग उत्पादन को प्रभावित करता है एवं इस रोग से संक्रमित भैंस यदि गलघोटू या सर्रा जैसे रोग से संक्रमित हो जाये तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है I यह रोग एक साथ एक से अधिक पशुओं को अपनी चपेट में कर सकता है I 
संक्रमण   

रोग ग्रसित पशु स्राव से संवेदनशील पशु में साँस द्वारा यह रोग अधिक फैलता है क्योंकि यह रोगी पशु के सभी स्रावों में होता है I दूध एवं मांस से मुन्ह्खुर संक्रमण की दर कम है जबकि यह विषाणु यातायात के द्वारा न फैलकर वायु द्वारा जमीनी सतह पर 10 किलोमीटर एवं जल सतह पर 100 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर तय कर सकता है I  इसके अलावा जो पशु भूतकाल में इस रोग से ग्रसित हो चूका है उससे भी महामारी की शुरुआत हो सकती है I  

मुंह खुर रोग नियंत्रण अभियान
इस रोग से प्रत्यक्ष तौर पर 20000 करोड़ रूपये की हानि होती है जिसे देखते हुए भारत सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर इस अभियान को चलाया है  I इस अभियान का लक्ष्य 2020 तक टीकाकरण सहित नियंत्रण क्षेत्र विकसित करने का है  I  वर्तमान में 221 जिलों में मुंह खुर नियंत्रण अभियान चलाया हुआ है जो कि 10 वीं  पंच वर्षीय परियोजना में केवल 54 जिलों तक ही सिमीत था I  12वीं  पंच वर्षीय परियोजना में सभी 640 जिलों को इसके अंतर्गत लेन की योजना है I मुंह खुर रोग क्षेत्रीय अनुसन्धान केंद्र हिसार के अनुसार उत्तर - पशचिम भारत में 1718 मुंह खुर रोग के प्रकोप गत 40 वर्षों दर्ज किये गए हैं I जहाँ इसकी संख्या 1976 में 169 थी वहीँ 2004-2009 में मुंह खुर रोग नियंत्रण अभियान के कारण  मात्र 8 हो गयी है I  भारत में 1991 से पहले मुंह खुर रोग विषाणु के टाइप ओ, टाइप ए , टाइप सी एवं टाइप एशिया वन के कारण संक्रमण होता था लेकिन अब यह संक्रमण केवल टाइप ओ, टाइप ए 22 एवं टाइप एशिया वन के कारण होता है जो की नवीनतम मुंह खुर रोग टीकाकरण का आधार है I
लक्षण

·         मुंह से लार टपकना 

·         बुखार आना 

·         मुंह, जीभ, मसूड़ों, खुरों के बीच में, थन व् लेवटी पर छाले पड़ना 

·         पशु चरणा  एवं जुगाली करना कम कर देता है या बिल्कुल बंद कर देता है 

·         पशु लंगडाकर चलता है विशेष कर जब खुरों में कीड़े हो जाते हैं 

·         दूध उत्पादन में एकदम गिरावट आती है 

नियंत्रण एवं बचाव
जिस क्षेत्र या फार्म आर मुह खुर महामारी का  प्रकोप हुआ है उस भवन को हलके अम्ल, क्षार या धुमन द्वारा विषाणु मुक्त किया जाना चाहिए I  प्रभावित क्षेत्रों  में वाहनों व पशुओं की आवाजाही पर  रोक लगनी  चाहिए I प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग स्थान पर रखना चाहिए I  इस रोग के लिए सभी सवेदनशील पशुओं का टीकाकरण एवं संक्रमित पशुओं से विषाणु न फैलने देने द्वारा नियंत्रण संभव है I  वर्ष में दो बार (मई -जून एवं अक्टूबर-नवम्बर) टीकाकरण एकमात्र बचाव का कारगर तरीका है I  चार माह से बड़े कटडे एवं कटडियों को पहला टीका एवं 15 से 30 दिन बाद बूस्टर डोज अवश्य लगवाएं एवं प्रत्येक 6 माह बाद टीकाकरण जरूर करवाएं I  इस टीका को शीतल (2 से 8) तापमान पर रखरखाव एवं यातायात करें I  इसके अलावा गलघोटू एवं लंगड़ी रोग का टीकाकरण भी इसी टीके के साथ किया जाने से पशु के जान की रक्षा की जा सकती है

Raksa Biovac (FMD +HS oil adjuvant): भैंस को गर्दन के मांस में गहरा लगायें एवं प्रत्येक 6 माह उपरांत दोहराएं I  टीकाकरण से पहले उसके ऊपर लिखी जरूरी सुचना पढ़ें एवं इसे अची तरह से हिलाएं I इस टीका को शीतल (2 से 8) तापमान पर रखरखाव एवं यातायात करें I

http://buffalopedia.cirb.res.in/index.php?option=com_content&view=article&id=339&Itemid=258&lang=en

No comments:

Post a Comment