Tuesday, October 22, 2013

गाय व भेंसों में मद चक्र, मद काल, व मद के लक्षण

गाय व भेंसों में मद चक्र, मद काल, व मद के लक्षण


दुग्ध पशुओं में प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए पशु पालक को मादा पशु में पाए जाने वाले मद चक्र का जानना बहुत आवश्यक हैगाय या भेंस सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद गर्मी में आती है जब तक शरीर का वज़न लगभग 250 किलो होने पर शुरू होता हैगाय व भेंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र शुरू हो जाता हैमद चक्र शरीर में कुछ खास न्यासर्गों (हार्मोन्स) के स्राव में संचालित होता है|गाय व भेंसों में मदकल (गर्मी की अवधि) लगभग 20 से 36 घटे का होता है जिसे हम भागों में बांट सकते हैं:- (1)मद की प्रारम्भिक अवस्था (2)मद की मध्यव्स्था (3)मद की अन्तिम अवस्थामद की विभिन्न अवस्थाओं का हम पशुओं में बाहर से कुछ विशेष लक्षणों को देख कर पता लगा सकते हैं|
मद की प्रारम्भिक अवस्था:

(1)
पशु की भूख में कमी आना|
(2)
दूध उत्पादन में कमी|
(3)
पशु का रम्भावना (बोलना)व बेचैन रहना|
(4)
योनि से पतले श्लैष्मिक पदार्थ का निकलना|
(5)
दूसरे पशुओं से अलग रहना|
(6)
पशु का पूंछ उठाना|
(7)
योनि द्वार (भग) का सूजना तथा बार-बार पेशाब करना|
(8)
शरीर के तापमान में मामूली सी वृद्धि|
मद की मध्यव्स्था:

गर्मीं की यह अवस्था बहुत महवपूर्ण होती है क्योंकि कृत्रिम ग्रंह धान के लिए यही अवस्था सबसे उपयुक्त मानी जाती हैइसकी अवधि लगभग 10 घटे तक रहती हैइस अवस्था में पशु काफी उत्तेजित दीखता है तथा वह अन्य पशुओं में रूचि दिखता है|यह अवस्था निम्नलिखित लक्षणों से पहचानी जा सकती है|
(1)
योनि द्वार (भग) से निकलने वाले श्लैष्मिक पदार्थ का गढा होना जिससे वह बिना टूटे नीचे तक लटकता हुआ दिखाई देता है|
(2)
पशु ज़ोर-ज़ोर से रम्भावना (बोलने) लगता हैं|
(3)
भग (योनि द्वार)की सूजन तथा श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में वृद्धि हो जाती है|
(4)
शरीर का तापमान बढ़ जाता हैं|
(5)
दूध में कमी तथा पीठ पर टेढ़ापन दिखाई देता है|
(6)
पशु अपने ऊपर दूसरे पशु को चढने देता हैं अथवा वह खुद दूसरे पशुओं पे चढने लगता|
मद की अन्तिम अवस्था:

(1)
पशु की भूख लगभग सामान्य हो जाती है|
(2)
दूध में कमी भी समाप्त हो जाती है|
(3)
पशु का रम्भाना कम हो जाता हैं|
(4)
भग की सूजन व श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में कमी आ जाती है|
(5)
श्लेष्मा का निकलना या तो बन्द या फिर बहुत कम हो जाता है तथा यह बहुत गाढ़ा व कुछ अपारदर्शी होने लगता है|
गर्भधान करने का सही समय:

पशु में मदकल प्रारम्भ होने के 12 से 18 घटे बाद अर्थात मदकल के द्वितीय अर्ध भाग में उसमें गर्भधान करना सबसे अच्छा रहता हैमोटे तौर पर जो पशु सुबह गर्मीं में दिखाई डे उसमें दोपहर के बाद तथा जो शाम को मद में गिकाही से उसमें अगले दिन सुबह गर्भधान करना चाहिएटीका लगाने का उपयुक्त समय वह है जब पशु दूसरे पशु के अपने ऊपर चढने पर चुपचाप खड़ा रहेइसे स्टेंडिंग हित कहते हैंबहुत से पशु मद काल में रम्भाते नहीं हैं लेकिन गर्मीं के अन्य लक्षणों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता हैं|
गाय व भैंस में मदकालगर्भकाल एवं गर्भवती एवं गर्भित करने की समय सूचक सरणी-1

पशु
संभोग काल
वर्ष में
ऋतुमती
होना
ऋतुकाल
की
अवधि
वीर्य
डालने
का समय
गर्भ काल
गर्भ न
ठहरने
पर
ब्यांत
के
बाद
गाय
भैंस
वर्ष भर
तथा
गर्मियों
में
अधिक
हर 18-21दिन बाद
30-60दिन में
20-36घण्टे
मदकल
आरम्भ
होने के
12-18
घण्टे बाद 1
गाय-280दिन
भैंस-308दिन


पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव:

वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आटे रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने में आता हैंहिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में वर्ष 1990 से 2000 तक किये गये कृत्रिम गर्भधान कार्य के एक विश्लेषण के अनुसार माह जून में सबसे अधिक (11.1%) गये गर्मीं में देखी गयीं जबकि सबसे कम(6.71%) गयें माह अक्टूबर में मद में पाई गयीं|प्रजनन के दृष्टिकोण से गायों में सबसे अच्छा त्रैमास सितम्बर-अक्टूबर -नवम्बर में सबसे कम (21.9%)गयें गर्मीं प्राप्त हुईभैंसों में ऋतुओं का प्रभाव बहुत अधक पाया जाता हैउपरोक्त वर्षों में माह मार्च से अगस्त तक छ: माह की अवधि में जिसमें दिन की लम्बाई अधिक होती है वर्ष की 26.17% भैंसें मद में रिकाड की गयीं जबकि शेष छ: माह सितम्बर से फरवरी की अवधि में जिसमें दिन छोटे होते हैंवर्ष की बाकी 73.83% भैंसें गर्मीं में पायी गयीं|गायों के विरुद्ध भैंसों में त्रैमास मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहा जिसमें केवल 11.11% भैंसें गर्मीं में देखी गयी जनकी त्रैमास अक्टूबर -नवम्बर-दिसम्बर सर्वोतम पाया गया जिसमें 44.13% भैंसों को मद में रिकाड किया गया|पशु प्रबन्धन में सुधर करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक त्रिकोण को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर ऋतुओं के कुप्रभाव को जिससे पशु पालकों को बहुत हानि होती हैकाफी हद तक कम किया जा सकता हैं|



पशु प्रजनन की क्रिया तथा इसमें न्यासर्गों (हार्मोन्स) की भूमिका

        
मादा पशुओं में मद चक्र एक अत्यन्त जटिल क्रिया है जिसमें अनेक हार्मोन्स कार्य करते हैंमस्तिष्क के निचले हिस्से से जुडी एक अंत: स्रावी ग्रन्थि जिसे पीउष अथवा पिट्यूटरी ग्रंथि कहते हैंपशु प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैप्रत्येक अंडाशय में जन्म से ही हजारों की संख्या में अपरिपक्क अवस्था में अंडाणु होते हैंपशु के युवावस्था में आने के बाद पिट्यूटरी ग्रन्थि के अगले भाग से गोनेडोट्रोफिन्स (एफ.एस.एच.एवं.एल.एच.)हार्मोन्स का स्राव होता है जिनके प्रभाव से अंडाशय में अनेक अंडाणुओं की वृद्धि व उनके परपक्कीकरण का कार्य शुरू हो जाता है|इनमें से केवल एक अंडाणु सामान्य रूप से हर 20-21 दिन के बाद ग्रफियन फोलिकल के अन्दर परिपक्क होकर मदकल की समाप्ति के लगभग 10 घण्टे के बाद अंडाशय से बाहर निकल कर डिम्बवाहनियों में प्रवेश करता हैंयदि इसका इस स्थान पर निषेचन (शुक्राणु से मिलकर भ्रूण में परिवर्तन) नहीं होतातो ये अंडाणुयहीं नष्ट हो जाता हैं तथा अंडाशय में दूसरा अंडाणु परिपक्क/विकसित होने लगता हैं|यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक की पशु गर्भधारण नहीं कर लेताइस चक्र को ही मद चक्र कहते हैं|

        
मद काल में अंडाशय में ग्रफियन फोलिकल जिसमें कि अंडाणु का परीपक्कीकरण होता हैएक हारमोन जिसे ईस्ट्रोजन कहते हैंनिकलता है तथा यही नहीं हार्मोन्स पशु में गर्मी के लक्षण उत्पन्न करता हैग्रफियन फोलिकल पशु के मदकल की समाप्ति के कुछ समय बाद फट जाता हैं तथा इस स्थान पर एक अन्य रचना जिसे कोरंपस ल्युटियम (सी.एल) कहते हैंविकसित होने लगती हैकोरंपस ल्युटियम से एक अन्य हारमोन जिसे प्रोजेस्टरोन कहते हैं जोकि गर्भाशय को भ्रूण के विकास के लिये तैयार करता हैं तथा ये पशु को गर्मीं में आने से भी रिक्त हैंअत: कोरपस ल्युटियम की गर्भ धारण के पश्चात सफल गर्भवस्था के लिए नितान्त आवश्यकता है|

        
यदि पशु का गर्भकाल में गर्भधान नहीं कराया गया हैं अथवा गर्भधान करने के बाद किसी कारण वश अंडाणु का निषेचन नहीं हो पाया तो मदकाल के लगभग 16वें दिन गर्भाशय से एक विशेष हारमोन जिसे पी.जी.एफअल्फ़ा कहते हैं निकलता है जो अंडाशय में विकसित हुई कोर्पस ल्युटियम को घोल देता हैंफलस्वरूप प्रोजेस्ट्रोन हारमोन का बनाना बन्द हो जाता हैं तथा अन्य अंडाणु का परीपक्कीकरण शुरू हो जाता हैं और कुछ समय बाद पशु पुन: गर्मी में आ जाता हैं|

        
यदि मदकाल में पशु का गर्भधान कराया गया है तथा अंडाणु का सफलता पूर्वक निषेचन हो गया है तो 5वें दिन निषेचित हो रहे भ्रूण से एक विशेष प्रकार का पदार्थ उत्पन्न होता है जिसके प्रभाव से गर्भाशय में आ जाता हैविकसित हो रहे भ्रूण से एक विशेष प्रकार का पदार्थ उत्पन्न होता हैं जिसके प्रभाव से गर्भाशय में पी.जी.एफ-अल्फ़ा नहीं बनाता और इस प्रकार पशु का मद चक्र टूट जाता हैं तथा वह गर्भवस्था में आजाता हैगर्भवस्था पूर्ण होने पर गर्भ के अन्दर पल रहे बच्चे के शरीरमाँ के शरीर तथा बच्चे से जुड़े प्लेसेंटा से कुछ हार्मोन्स निकलना आरंभ हो जाते हैं जिनके प्रभाव से सी.एल. समाप्त हो जाती है और पशु प्रसव की अवस्था में आकर बच्चे को जन्म डे देता हैंगर्भाशय के सामान्य अवस्था में आने पर पशु में मद चक्र पुन: आरंभ हो जाता है|

        
मद के स्पष्ट लक्षणों के लिये ईस्ट्रोजन के साथ-साथ कम मात्रा में प्रोजेस्ट्रोन हारमोन जोकि पिछले मद चक्र के समाप्त हो रहे सी.एल. से उत्पन्न होता हैभी आश्यक हैइसी कारण प्रथम बार बछडियों के मद में आने पर तथा प्रसव के बाद पर उनमें स्पष्ट मद के लक्षण नहीं दिखते|

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