चारे का भंडारण:
पशुओं से अधिकतम
उत्पादन प्राप्त करने के
लिए उन्हें पर्याप्त
मात्रा में पौष्टिक
चारे की आवश्यकता
होती है| इन
चरों को पशुपालक
या तो स्वयं
उगाता है या
फिर कहीं और
से खरीद कर
मांगता है| चारे
की फसल उगने
का एक खास
समय होता है
जोकि अलग-अलग
चारे के लिए
अलग-अलग है|
चारे को अधिकांशत:
हरी अवस्था में
पशुओं को खिलाया
जाता है तथा
इसकी अतिरिक्त मात्रा
को सुखाकर भविष्य
में प्रयोग करने
के लिए भंडार
कर लिया जाता
है ताकि चारे
की कमी के
समय उसका प्रयोग
पशुओं को खिलाने
के लिए किया
जा सके| चारे
का इस तरह
से भंडारण करने
से उसमें पोषक
तत्व बहुत कम
रह जाते है|
इसी चारे का
भंडारण यदि वैज्ञानिक
तरीके से किया
जाय तो उसकी
पौष्टिकता में कोई
कमी नहीं आती
तथा कुछ खास
त्रूकों से इस
चारे को उपचारित
करके रखने से
उसकी पौष्टिकता को
काफी हद तक
बढाया भी जा
सकता है| विभिन्न
चरों को भंडारण
करने की कुछ
विधियाँ नीचे दी
जा रही है|
1.घास को सुखाकर
रखना (हे बनाना):
हे बनाने के लिए
हरे कहरे या
घास को इतना
सुखाया जाता है
जिससे कि उसके
नमी कि मात्रा
15-20% तक ही रह
जाय| इससे पादप
कोशिकाओं तथा जीवाणुओं
की एन्जाइम क्रिया
रुक जाती है
लेकिन इससे चारे
की पौष्टिकता में
कमी नहीं आती|
हे बनाने के
लिए लोबिया, बरसीम,
लूसर्न, सोयाबीन, मटर आदि
लेग्यूम्स तथा ज्वार,
नेपियर, जौ, ज्वी,
बाजरा, ज्वार, मक्की, गिन्नी,
अंजन आदि घासों
का प्रयोग किया
जा सकता है|
लेग्यूम्स घासों में सुपाच्य
तत्व अधिक होते
हैं तथा इसमें
प्रोटीन व विटामिन
ए.डी.व
ई.भी पर्याप्त
मात्रा में पाए
जाते हैं| दुग्ध
उत्पादन के लिए
ये फसलें बहुत
उपयुक्त होती है|
हे बनाने के
लिए चारा सुखाना
हेतु निम्नलिखित तीन
विधियों में से
कोई भी विधि
अपनायी जा सकती
है|
(क) चारे को
परतों में सुखाना:-जब चारे
की फसल फूल
आने वाली अवस्था
में होती है
तो उसे काटकर
9-9'की परतों में पूरे
खेत में फैला
देते हैं तथा
बीच-बीच में
उसे पलटते रकते
हैं जब तक
कि उसमें पानी
की मात्रा लगभग
15% तक न रह
जाय| इसके बाद
इसे इकट्ठा कर
लिया जाता है
तथा ऐसे स्थान
पर जहां वर्षा
का पानी न
आ सके इसका
भंडारण कर लिया
जाता है|
(ख) चारे को
गट्ठर सुखाना:- इसमें
चारे को काटकर
24 घण्टों तक खेत
में पड़ा रहने
देते हैं| इसके
बाद इसे छोटी-छोटी ढेरियों
अथवा गट्ठरों में
बांध कर पूरे
खेत में फैला
देते हैं| इन
गट्ठरों को बीच-बीच में
पलटते रहते हैं
जिससे नमी की
मात्रा घट कर
लगभग 18% तक हो
जाए|
(ग) चारे को
तिपाई विधि द्वारा
सुखाना:-जहां भूमि
अहिक गीली रहती
हो अथवा जहां
वर्षा अधिक होती
हो ऐसे स्थानों
पर खेतों में
तिपाइयां गाढकर चारे की
फसलों को उन
पर फैला देते
हैं| इस प्रकार
वे भूमि के
बिना संपर्क में
आए हवा व
धुप से सूख
जाती है| कई
स्थानों पर घरों
की क्षत पर
भी घासों को
सुखा कर हे
बनाया जाता है|
प्रदेश मे मध्यम
व ऊंचे क्षेत्रों
में हे (सूखे
घास) को कूप
अथवा गुम्बद की
शक्ल के ढेर
जिन्हें स्थानीय भाषा में
घोड़ कहते हैं
में ठीक ढंग
से व्यवस्थित करके
रखा जाता है|
इनका आकार कोन
की तरह होने
के कारण इन
पर वर्षा का
पानी खड़ा नहीं
हो पाता जिससे
चारे की पौष्टिकता
में कमी नहीं
आती|
2.सूखे चारे की
पौष्टिकता बढ़ाना :
(चारे का यूरिया
द्वारा उपचार) सूखे
चारे जैसे भूसा
(तूड़ी), पुराल आदि में
पौष्टिक तत्व लिगनिन
के अंदर जकड़े
रहते हैं जोकि
पशु के पाचन
तन्त्र द्वारा नहीं किए
जा सकते| इन
चरों का कुछ
रासायनिक पदार्थों द्वारा उपचार
करने इनके पोषक
तत्वों को लिगनिन
से अलग कर
लिया जाता है|
इसके लिए यूरिया
उपचार की विधि
सबसे सस्ती तथा
उत्तम है|
उपचार की विधि
एक क्विंटल सूखे
चारे जैसे पुआल
या तूड़ी के
लिए चार किलो
यूरिया का 50 किलो साफ
पानी में घोल
बनाते है | चारे
को समतल तथा
कम ऊंचाई वाले
स्थान पर 3-4 मीटर
की गोलाई में
6" ऊंचाई की तह
में फैला कर
उस पर यूरिया
के घोल का
छिड़काव करते हैं|
चारे को पैरों
से अच्छी तरह
दबा कर उस
पर पुन: सूखे
चारे की एक
और पर्त बिछा
दी जाती है
और उस पर
यूरिया के घोल
का समान रूप
से छिड़काव किया
जाता है| इस
ट्रक थ के
ऊपर थ बिछाकर
25 क्विंटल की ढेरी
बनाकर उसे एक
पोलीथीन की शीट
से अच्छी तरह
सेध्क दिया जाता
है| यदि पोलीथीन
की शीट उपलब्ध
न हो तो
उपचारित चारे की
ढेरी को गुम्बदनुमा
बनाते हैं जिसे
ऊपर से पुआल
आदि से ढक
दिया जाता है|
उपचारित चारे को
3 सप्ताह तक ऐसे
ही रखा जाता
है जिससे उसमें
अमोनिया गैस बनती
है जो घटिया
चारे जो पौष्टिक
तथा पाच्य बना
देती है| इसके
बाद इस चारे
को पशु को
खालिस या फिर
हरे चारे के
साथ मिलाकर खिलाया
जा सकता है|
(यूरिया उपचार से लाभ
)
1. उपचारित
चारा नरम व
स्वादिष्ट कोने के
कारण पशु उसे
खूब चाव से
खाते हैं तथा
चारा बर्बाद नहीं
होता|
2. पांच या 6 किलों
उपचारित पुआल खिलने
से दुधारू पशुओं
में लगभग 1 किलो
दूध की वृद्धि
हो सकती है|
3. यूरिया उपचारित चारे को
पशु आहार में
सम्मिलित करने से
दाने में कमी
की जा सकती
है जिससे दूध
के उत्पादन की
लागत कम हो
सकती है|
4. बछड़े/बच्छियों को यूरिया
उपचारित चारा खिलाने
से उनका बजन
तेज़ी से बढता
है तथा वे
स्वस्थ दिखायी देते है|
सावधानियाँ:-
(1) यूरिया
का घोल साफ
पानी में तथा
यूरिया की सही
मात्रा के साथ
बनाना चाहिए|
(2) घोल में यूरिया
पूरी तरह से
घुल जानी चाहिए|
(3) उपचारित
चारे को 3 सप्ताह
से पहले पशु
को कदापि नहीं
खिलाना चाहिए|
(4) यूरिया
के घोल को
चारे के ऊपर
समान रूप से
छिड़काव चाहिए|
3.साइलेज बनाना:-
हरा चारा जिसमें
नमी की पर्याप्त
मात्रा होती है
को हवा की
अनुपस्थिति में जब
किसी गड्ढे में
दबाया जाता है
तो किण्डवन की
क्रिया से वह
चारा कुछ समय
बाद एक अचार
की तरह बन
जाता है जिसे
साइलेज कहते हैं|
हरे चारे की
कमी होने पर
साइलेज का प्रयोग
पशुओं को खिलने
के लिए किया
जाता है|
साइलेज बनाने योग्य फसलें:-
साइलेज लगभग सभी
घासों से अकेले
अथवा उनके मिश्रण
से बनाया जा
सकता है| जीन
फसलों में घुलन
शील कार्बोहाईड्रेट्स अधिक
मात्रा में होते
हैं जैसे कि
ज्वार,मक्की, जवी,
गिन्नी घास, नेपियर,
सिटीरिया तथा घास्नियों
की घास आदि,साइलेज बनाने के
लिए उपयुक्त होती
हैं| फली दार
जिनमें कार्बोहाइड्रेटस कम तथा
नमी की मात्रा
अधिक होती हैं,
को अधिक कार्बोहाइड्रेटस
वाली फसलों के
साथ मिलाकर अथवा
शीरा मिला कर
साइलेज के लिए
प्रयोग जा सकता
है| साइलेज बनाने
के लिए चारे
की फसलों को
फूलने से लेकर
दानों के दूधिया
होने तक की
अवस्था में काट
लेना चाहिए| साइलेज
बनाते समय चारे
में नमी की
मात्रा 65% होनी चाहिए|
साइलेज के गड्ढे/साइलोपिट्स:-
साइलेज जीन गड्ढों
मरण बनाया जाता
है उन्हें साइलोपिट्स
कहते हैं| साइलोपिट्स
कई प्रकार के
हो सकते हैं
जैसे ट्रेन्च साइलो
बनाने सस्ते व
आसान होते हैं|
आठ फुट व्यास
तथा 12 फुट गहराई
वाले गड्ढे में
4 पशुओं के लिए
तीन माह तक
का साइलेज बनाया
जा सकता है|
गड्ढा (साइलो)ऊंचा होना
चाहिए तथा इसे
भली प्रकार से
कूटकर सख्त बना
लेना चाहिए| साइलो
के फर्श व
दीवारें पक्की बनानी चाहिए
और यदि ये
संभव न हो
तो दीवारों की
लिपाई भी की
जा सकती है|
साइलेज बनाने की विधि:-
साइलेज बनाने के लिए
जिस भी हरे
चारे का इस्तेमाल
करना हो, उसे
उपयुक्त अवस्था में खेत
से काट कर
2 से 5 सेन्टीमीटर के टुकड़ों
में कुट्टी बना
लेना चाहिए ताकि
ज्यादा से ज्यादा
चारा साइलो पिट
में दबा कर
भरा जा सके|
कुट्टी किया हुआ
चारा खूब दबा-दबा कर
ले जाते हैं
ताकि बरसात का
पानी ऊपर न
टिक सके| फिर
इसके ऊपर पोलीथीन
की शीट बिछाकर
ऊपर से 18-20 से.मी. मोटी
मिट्टी की पर्त
बिछा दी जाती
है| इस परत
को गोबर व
चिकनी मिट्टी से
लीप दिया जाता
है| दरारें पड़
जाने पर उन्हें
मिट्टी से बन्द
करते रहना चाहिए
ताकि हवा व
पानी गड्ढे में
प्रवेश न कर
सकें| लगभग 45 से
60 दिनों में साइलेज
बन कर तैयार
हो जाता है
जिसे गड्ढे को
एक तरफ से
खोलकर मिट्टी व
पोलोथीन शीट हटाकर
आवश्यकतानुसार पशु को
खिलाया जा सकता
है| साइलेज निकालकर
गधे को पुन:
पोलीथीन शीट व
मिट्टी से ढक
देना चाहिए| प्रारम्भ
में साइलेज को
थोड़ी मात्रा में
अन्य चारों के
साथ मिला कर
पशु को खिलाना
चाहिए तथा धीरे-धीरे पशुओं
को इसका स्वाद
लग जाने पर
इसकी मात्रा 20-30 किलो
ग्राम प्रति पशु
तक बढायी जा
सकती है|
Article Credit:http://www.hpagrisnet.gov.in/animal-husbandry/hindi%20page/farmers%20handbook%2014.aspx
No comments:
Post a Comment