Friday, November 8, 2013

खनिज लवणों का पशु प्रजनन क्षमता पर प्रभाव

पशु के आहार में खनिज लवणों का अतिमहत्वपूर्ण स्थान हैं। शरीर में इनकी कमी से नाना प्रकार के रोग एवं समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। इनकी कमी से पशुओं का प्रजनन तंत्र भी प्रभावित होता है, जिससे पशुओं में प्रजनन संबंधित विकार पैदा हो जाते है, जैसे पशु का बार-बार मद में अनाना, अधिक आयु हो जाने के बाद भी मद में नहीं आना, ब्याने के बाइ के मद में नहीं आना या देर से आना तथा मद में आने के बाद का नहीं रूकना इत्याइि तरह के उत्पन्न हो जाते हैं। इन विकारों के लिये कारण उत्तरदायी है, जिसमें एक खनित लवण भी हैं। 

खनिज लवणों के विस्तृत जानकारी से पहले यह बताना आवश्यक है, कि खनिज क्या हैत्र किसी भी वस्तु के जलने पर जो राख बचती है, उसे भस्म या खनित कहतें हैं। यह बहुत ही थोड़ी मात्रा में प्रत्येक प्रकार के चारे-दाने तथा शरीर के प्रायः सभी अंगाों मे पाये जाते है। प्रकृति में लगभग ४० प्रकार के खनिज जीव-जन्तुओं के शरीर में पाये जाते है, लेकिन इसमें से कुछ ही अत्यन्त उपयोगी है। जिनकी आवश्यकता पशु के आहार में होती है। शरीर के आवश्यकतानुसार खनिजों को दो भागों में बाटते है। एक तो वे खनित जो अधिक मात्रा में पशु के लिये आवश्सक है, जिनकी मात्रा को ग्राम में या प्रतिशत में व्यक्त करते है इनको प्रमुख खनित कहते है, जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, सोडियम , सल्फर,, मैग्निशियम तथा क्लोरीन दूसरे वे खनित जो शरीर हेतु बहुत सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक होते है, जिसको पी.पी.पी. में व्यक्त करते है, ऐसे खनिजों को सूक्ष्म या विरल खनिज कहते है, जैसे लोहा, जिंक, कोबाल्ट, कापर, आयोडिीन, मैगनीज, मोलीब्डेनम, वेमियम, लोरिन, सेलेनियम, निकल, सिलिकान, टिन एवं वेनाडियम। यघपि दूसरे सूक्ष्म खनिज जैसे एल्यूमीनियम, आर्सेनिक , बेरियम, बोरान, ग्रोमीन, कैडमियम भी शरीर के マतकों में पाये गये है, परन्तु शरीर में इसकी भूमिका के बारे में अभी तक जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी हें

इस प्रकार कैल्शियम, फास्फाकरस, पोटेशियम, सोडिीयम, सल्फर, मैग्नीशियम, क्लोरीन, लोहा तॉबा, कोबाल्ट, मैगनिज, जिंक एवं आयोडीन आदि पशुओं के लिए अति आवश्यक खनिज लवण है, जो जीवन एवं स्वास्थ्य रक्षा हेतु आवश्यक है। शरीर में खनिज लवणों के सामान्य कार्य की बात किया जाय तो कैल्शियम एवं फास्फोरस दॉत हड्डियों के बनने में आवश्यक है। दूधारू गायों के रक्त में कैथ्ल्श्शयम की कमी से दुग्ध ज्वर हो जाता है। सोडियम, पोटैशियम एवं क्लोरीन शरीर के द्रवों में परिसारक दाब को ठीक बनाये रखते है तथा उनमें अन्य गुणों का सन्तुलन स्थापित करते है। रक्त में पोटैशियम, कैल्शियम तथा सोडियम का समुचित अनपात हदय की गति तथा अन्य चिकनी मांसपेशियों को उत्तेजित करने एवं उनमें संकुचन की व्यिा सम्पन्न करने के लिए आवश्यक है। लौह लवण लाल रक्त कणों में हीमोग्लोबिन बनाने में आवश्यक होता है, जिसके कारण रक्त में आक्सीजन लेने की शक्ति पैदा होती है। अन्य खनिज लवण या तो शरीर के कुछ आवश्यक भाग बनते हे या एन्जाइम पद्वति के आवश्यक तत्व बनाते है। इसके अतिरिक्त इनके कुछ विशेष कार्य भी होते है।

पशुओं के प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले खनिज लवणों की बात की जाए तो ये मुख्यतः कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तॉबा, कोबाल्ल्ट, मैगनित आयोडीन एवं जिंक है। इन जैविक तत्वों की कमी से पशुओं में मदहीनता अथवा आर आर मद में आना एवं गर्भ धारण न करने की समस्यायें आती है। आहार में कैल्शियम की कमी के कारण अडांणु का निषेचन कठिन होता है, तथा गर्भाशय पीला तथा अव्शिशील हो जाता है। पशुओं के आहार में फास्फोरस के कमी से पशुओं में अण्डोतत्सर्ग कम होता है, तथा पशु का गर्भपात हो जाता है। अन्य सूक्ष्म खनिज लवण भी पशुओं में अण्डोत्पादन, शुवणुत्पादन, निषेचन, श्राू्रण के विकास एवं बच्चा पैदा होने तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभातें है। मुर्गियों में अण्डा उत्पादन हेतु कैल्शियम सहित अन्य खनिज लवण अति आवश्यक है। इनके आहार में कैल्शियम के कमी से अच्छी गुणवत्ता वाले अण्डे का उत्पादन प्रभावित होता है।

अतः पशुपालक भाईयों को चाहिए कि इस तरह की समस्याओं को दूर रखने के लिए पशुओं को संतुलित आहार दें, अर्थात पशुओं के दाने चारे में शर्करा या कार्बोहाइडेट, प्रोटीन,, वसा, खनिज लवण तथा विटामिनों का सन्तुलित मात्रा में होना नितान्त आवश्यक होता है। इन पोषक तत्व के असन्तुलित होने के कारण ही कुपोषण जन्य रोग पैदा होते है। पशु के आहार में सुखे चारे तथा हरे चारे अवश्यक होना चाहिए। केवन हरा चारा या केवल सूखा चारा नहीं देना चाहिए, कम से कम दो - तिहार्द सूखा चारा तथा एक तिहाई हरा चारा होना चाहिए। जहॉ तक दाना की बात है तो कोई एक प्रकार का दाना या खली नही देना चाहिऐ बल्कि इनका मिश्रण होना चाहिए। यदि एक कुन्टल दाना तैयार करना है तो २०-३० किग्रा खली, ३०-४० किग्रा चोकर, १५-२५ किग्रा, दलहनी फसलों के उपजात, १५-२५ किग्रा अदलहनी फसलों के उत्पाद, २ किग्रा खड़िया एवं १ किग्रा नमक लेकर भली भाति मिश्रित कर लेना चाहिए। प्रौढ़ पशुओं को निर्वाह हेतु ऐसे मिश्रित दाने की एक व्यिा मा.ा एवं अन्य कार्यो जैसे प्रजनन एवं गर्भ हेतु १-१.५० किग्रा एवं दूध उत्पादन हेतु ढ़ाई से तीन किग्रा दूध पर १ किग्रा दाना निर्वाहक आहार के अतिरिक्त देना चाहिए। इस प्रकार से दिये गये आहार से पशुओं में खनिज लवणों की प्रति अधिकाशंत हो जाती है, परन्तु फिर भी इनमें से कुछ सूक्ष्म खनिज लवणों की कमी हो सकती है जिसके लिए खिनज मिश्रण का पाउछर जो बाजार में विभिन्न व्यापारिक नामों में उपलब्ध है, जिसको ३०-४० ग्राम प्रतिदिन प्रति प्रौढ़ पशु को देना चाहिए। पशुओं के आहार में ख्खिलाये जाने वाले विभिन्न चारो दानों, जैसे हड्डियों एवं मांस के चूर्ण में १५ से ६४ प्रतिशत, दो दालिय सूखी घासों में ७ से ११ प्रतिशत, खली एवं भूसी में ५-७ प्रतिशत, भूसा में ४-५ प्रतिशत, आनाज में १.५-३.० प्रतिशत एवं हरे चारे तथा साइलेज में १ से ३ प्रतिशत खनिज लवण पायें जाते हैं। इस प्रकार पशु को बताये गये चारे - दाने के प्रकार, अनुपात एवं मात्रा के.


Article Credit:http://www.bhuminirman.com

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